नई दिल्ली
1998 से लेकर के 2010 के बीच भारतीयों ने करीब 34 लाख करोड़ रुपए अघोषित तौर पर विदेश में जमा किया था। संसद में पेश की गई वित्तीय मामलों की समिति की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है।
10 सेक्टर्स ने जमा की सबसे ज्यादा संपत्ति
देश के तीन प्रतिष्ठित आर्थिक और वित्तीय शोध संस्थानों, राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी), राष्ट्रीय व्यावहारिक आर्थिक शोध परिषद (एनसीएईआर) और राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंध संस्थान (एनआईएफएम) के अध्ययनों के आधार पर यह रिपोर्ट रखी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक इसमें उन सेक्टर्स का भी खुलासा हुआ है, जिन्होंने सबसे ज्यादा अघोषित संपत्ति को जमा किया है। वित्त पर स्थाई समिति की लोक सभा में प्रस्तुत इस रिपोर्ट के अनुसार, इन तीनों संस्थानों का निष्कर्ष है कि अचल संपत्ति, खनन, औषधि, पान मसाला, गुटका, सिगरेटतं बाकू, सर्राफा, जिंस, फिल्म और शिक्षा के कारोबार में काली कमाई या अघोषित धन का लेन-देन अपेक्षाकृत अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक, अभी तक सामने आए अनुमानों में इस उद्देश्य के लिए उपयोग की गई सर्वश्रेष्ठ मेथडोलॉजी या दृष्टिकोण को लेकर एकरूपता या सहमति नहीं है।
28 मार्च को जमा की थी रिपोर्ट
एम. वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले इस पैनल ने 16वीं लोकसभा भंग होने से ठीक पहले 28 मार्च को अपनी रिपोर्ट लोकसभा में जमा की थी। संसदीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ऐसा लगता है कि अघोषित आय और संपत्ति का विश्वसनीय अनुमान लगाना खासा मुश्किल काम है। कालेधन पर राजनीतिक विवाद के बीच मार्च 2011 में तत्कालीन सरकार ने इस तीनों संस्थाओं को देश और देश के बाहर भारतीयों के कालेधन का अध्ययन/सर्वेक्षण करने की जिम्मेदारी दी थी।
यह निकला अलग-अलग निष्कर्ष
रिपोर्ट के मुताबिक, एनसीएईआर ने अपने अध्ययन में कहा है कि भारत से 1980 से लेकर 2010 के बीच 26,88,000 लाख करोड़ रुपए से लेकर 34,30,000 करोड़ रुपए का काला धन विदेश भेजा गया। वहीं, एनआईएफएम के अनुसार, अर्थव्यवस्था में सुधार (1990-2008) के दौरान लगभग 15,15,300 करोड़ रुपए (216.48 अरब डॉलर) का काला धन भारत से विदेश भेजा गया। एनआईपीएफपी के अनुसार, 1997-2009 के दौरान देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.2 फीसदी से लेकर 7.4 फीसदी तक काला धन विदेश भेजा गया।
समिति ने कहा है वह इस विषय में संबद्ध पक्षों से पूछताछ की प्रक्रिया में कुछ सीमित संक्या में ही लोगों से बात चीत कर सकी, क्योंकि उसके पास समय का अभाव था। उसने कहा है कि इसलिए इस संदर्भ में गैर सरकारी गवाहों और विशेषज्ञों से पूछताछ करने की कवायद पूरी होने तक समिति की इस रपट को प्राथमिक रपट के रूप में लिया जा सकता है। समिति ने कहा है कि वह वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग से अपेक्षा करती है कि वह कालेधन का पता लगाने के लिए और अधिक शक्ति के साथ प्रयास करेगा। समिति यह भी अपेक्षा करती है कि विभाग इन तीनों अध्ययनों और कालेधन के मुद्दे पर गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा प्रस्तुत की गई सातों रपटों पर आगे की आवश्यक कार्रवाई भी करेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुप्रतीक्षित प्रत्यक्ष कर संहिता को जल्द से जल्द तैयार कर उसे संसद में रखा जाए, ताकि प्रत्यक्ष कर कानूनों को सरल और तर्कसंगत बनाया जा सके।
1998 से लेकर के 2010 के बीच भारतीयों ने करीब 34 लाख करोड़ रुपए अघोषित तौर पर विदेश में जमा किया था। संसद में पेश की गई वित्तीय मामलों की समिति की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है।
10 सेक्टर्स ने जमा की सबसे ज्यादा संपत्ति
देश के तीन प्रतिष्ठित आर्थिक और वित्तीय शोध संस्थानों, राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी), राष्ट्रीय व्यावहारिक आर्थिक शोध परिषद (एनसीएईआर) और राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंध संस्थान (एनआईएफएम) के अध्ययनों के आधार पर यह रिपोर्ट रखी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक इसमें उन सेक्टर्स का भी खुलासा हुआ है, जिन्होंने सबसे ज्यादा अघोषित संपत्ति को जमा किया है। वित्त पर स्थाई समिति की लोक सभा में प्रस्तुत इस रिपोर्ट के अनुसार, इन तीनों संस्थानों का निष्कर्ष है कि अचल संपत्ति, खनन, औषधि, पान मसाला, गुटका, सिगरेटतं बाकू, सर्राफा, जिंस, फिल्म और शिक्षा के कारोबार में काली कमाई या अघोषित धन का लेन-देन अपेक्षाकृत अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक, अभी तक सामने आए अनुमानों में इस उद्देश्य के लिए उपयोग की गई सर्वश्रेष्ठ मेथडोलॉजी या दृष्टिकोण को लेकर एकरूपता या सहमति नहीं है।
28 मार्च को जमा की थी रिपोर्ट
एम. वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले इस पैनल ने 16वीं लोकसभा भंग होने से ठीक पहले 28 मार्च को अपनी रिपोर्ट लोकसभा में जमा की थी। संसदीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ऐसा लगता है कि अघोषित आय और संपत्ति का विश्वसनीय अनुमान लगाना खासा मुश्किल काम है। कालेधन पर राजनीतिक विवाद के बीच मार्च 2011 में तत्कालीन सरकार ने इस तीनों संस्थाओं को देश और देश के बाहर भारतीयों के कालेधन का अध्ययन/सर्वेक्षण करने की जिम्मेदारी दी थी।
यह निकला अलग-अलग निष्कर्ष
रिपोर्ट के मुताबिक, एनसीएईआर ने अपने अध्ययन में कहा है कि भारत से 1980 से लेकर 2010 के बीच 26,88,000 लाख करोड़ रुपए से लेकर 34,30,000 करोड़ रुपए का काला धन विदेश भेजा गया। वहीं, एनआईएफएम के अनुसार, अर्थव्यवस्था में सुधार (1990-2008) के दौरान लगभग 15,15,300 करोड़ रुपए (216.48 अरब डॉलर) का काला धन भारत से विदेश भेजा गया। एनआईपीएफपी के अनुसार, 1997-2009 के दौरान देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.2 फीसदी से लेकर 7.4 फीसदी तक काला धन विदेश भेजा गया।
समिति ने कहा है वह इस विषय में संबद्ध पक्षों से पूछताछ की प्रक्रिया में कुछ सीमित संक्या में ही लोगों से बात चीत कर सकी, क्योंकि उसके पास समय का अभाव था। उसने कहा है कि इसलिए इस संदर्भ में गैर सरकारी गवाहों और विशेषज्ञों से पूछताछ करने की कवायद पूरी होने तक समिति की इस रपट को प्राथमिक रपट के रूप में लिया जा सकता है। समिति ने कहा है कि वह वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग से अपेक्षा करती है कि वह कालेधन का पता लगाने के लिए और अधिक शक्ति के साथ प्रयास करेगा। समिति यह भी अपेक्षा करती है कि विभाग इन तीनों अध्ययनों और कालेधन के मुद्दे पर गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा प्रस्तुत की गई सातों रपटों पर आगे की आवश्यक कार्रवाई भी करेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुप्रतीक्षित प्रत्यक्ष कर संहिता को जल्द से जल्द तैयार कर उसे संसद में रखा जाए, ताकि प्रत्यक्ष कर कानूनों को सरल और तर्कसंगत बनाया जा सके।
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