
पुष्पा मेरी परिचिता की लाडली बेटी है। उसे घूमने फिरने, फिल्में देखने का काफी शौक है। वह नौकरी भी करती है। एक बार मेरी परिचिता की तबियत ठीक नहीं थी। अपने सारे घरेलू कार्य निबटा कर रात 8.3० बजे मैं उसके घर पहुंची। परिचिता का बदन बुखार से तप रहा था, फिर भी परिचिता सब्जी काट रही थी। मैंने उससे सब्जी लेकर काटना शुरू किया और पुष्पा के बारे में पूछा। पता चला कि वह अपने लिये श्रृंगार की सामग्री लेने फैंसी स्टोर गई है। भला बतायें ऐसी हालत में पुष्पा को घर का काम काज करना चाहिए कि नहीं। मैंने कहा पुष्पा भले ही नौकरी करती हो लेकिन उसे घरेलू कार्यों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। फिर ऐसी परिस्थिति में तो उसे आपके पास रहकर आपकी सेवा करनी चाहिए। परिचिता ने कहा ऐसा मेरा सौभाग्य कहां? फिर तुरंत संभलकर बोली -पुष्पा छोटी है, लाडली है। परायी हो जाने के बाद ससुराल में तो उसे ही काम करने पड़ेंगे। अभी से वह गृहस्थी के पचड़ों से क्यों जूझे। उसके इस कथन से मैं हैरान थी। माना आपकी बेटी नाजों में पली-बढ़ी है, एकलौती है, परन्तु काम न कराके कहीं अनजाने में आप उसका बुरा तो नहीं कर रही हैं। बेटा हो बेटी, घर के कामकाज में उससे यथा संभव सहयोग अवश्य लें, इससे कामकाज में सुविधा हो जाएगी। आपका बेशकीमती समय बचेगा तथा साथ ही साथ बच्चों में भी काम करने की ललक बनी रहेगी। यदि आप शुरू से ही उन्हें काम से दूर रखेंगे तो भविष्य में कभी कोई छोटा सा छोटा काम करने में भी उन्हें झिझक ग्लानि महसूस होगी। साथ ही साथ, थोड़ा सा काम भी उन्हें बोझ लगने लगेगा और हर काम के लिये उन्हेंदूसरों पर आश्रित होना पड़ेगा। जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है। पग-पग पर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। अत: मां बाप को चाहिये कि बचपन से ही बिना भेदभाव किये बच्चों में अपना काम स्वयं करने की आदत डालिए। साथ ही साथ बेटियों को भी अपना कर्तव्य समझना चाहिए। उन्हें चाहिए कि भाई को स्नेह, प्रेम से साथ लेकर घर के कामों में हाथ बंटाएं। याद रखिये जीवन क्षेत्र में कामयाब होने के लिये स्वावलंबन परम आवश्यक है, चाहे बेटा हो या बेटी।
- सुमित्रा यादव
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