गांधीनगर
कथा सम्राट प्रेमचंद ने अपने पहले कथा संग्रह सोजे वतन के बारे में सरस्वती के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को सूचित करते हुए लिखा था कि यह पुस्तक जनहित के लिए लिखी गई है। प्रेमचंद ने अपने कथा साहित्य के माध्यम से जन शिक्षण के दायित्व का निर्वहन करते हुए हिन्दी नवजागरण में भारतेंदु हरिश्चंद्र की भूमिका और उद्देश्य को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने कथा साहित्य में समाज की आधार इकाई स्त्री-पुरुष के पारस्परिक संबंधों के विश्लेषण पर सर्वाधिक बल दिया। वे मानते थे कि स्त्री पुरुष के समानता और परस्पर पूरकता पर आधारित स्वस्थ संबंध से ही नये समाज की पुनर्रचना की जा सकती है।
उक्त बातें गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय के प्रो संजीव कुमार दुबे ने मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित आनलाइन प्रेमचंद जयंती संवाद कार्यक्रम में अतिथि वक्ता के रूप में कही। प्रो दुबे ने कहा कि प्रेमचंद समाज को आइना दिखाना चाहते थे, ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने में सुधार कर सके। प्रेमचंद ने न सिर्फ किसान जीवन पर कहानियाँ लिखी अपितु हिन्दी साहित्य की जमीन पर उग आए अनुपयोगी घास-पतवार को साफ कर एक कथा कृषक की तरह भारतीय जन चेतना के विकास के लिए उपयोगी फसलें उगाई। कार्यक्रम कि संयोजक डॉ नीतू परिहार ने प्रस्तावना के तौर पर प्रेमचंद की अनेक कहानियों के उदाहरण देते हुए प्रेमचंद की विशिष्टता को रेखांकित किया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संकाय अध्यक्ष प्रोफ़ेसर हेमंत द्विवेदी उपस्थित थे।कार्यक्रम की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष एवं अधिष्ठाता प्रोफेसर सीमा मालिक ने की। अतिथियों का स्वागत विभाग के प्रभारी डॉ आशीष सिसोदिया ने किया। दूसरे वक्ता के रूप में भारतीय उच्च अध्ययन केंद्र, शिमला के अध्येता प्रोफ़ेसर माधव हाड़ा ने प्रेमचंद के उपन्यास साहित्य पर अपनी बात कहते हुए कहा कि प्रेमचंद बड़े रचनाकार हैं। प्रेमचंद कथा साहित्य में एक छलांग है। सागर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने प्रेमचंद के कथेतर साहित्य पर अपनी बात कहते हुए कहा कि प्रेमचंद ने अपने संपादकीयों के माध्यम से तत्कालीन ज्वलंत विषयों पर अपने विचार प्रकट किये।
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