नई दिल्ली
देश की विभिन्न सरकारी नौकरियों/ लोक सेवाओं में सामान्य श्रेणी के तहत कोई भी अभ्यर्थी रोजगार पा सकता है। फिर चाहे वह ओबीसी, एससी, एसटी श्रेणी से ही क्यों न हो। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया है।
जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट्ट और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने कहा कि आरक्षित वर्गों के मेधावी अभ्यर्थियों को सामान्य श्रेणी के तहत चयनित होने से रोकना सामुदायिक आरक्षण को बढ़ावा देगा। इसलिए यह सिद्धांत सही है कि किसी भी आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार अपने मेरिट के आधार पर सामान्य श्रेणी के तहत भी चयनित हो सकता है। इसे कोटा/आरक्षित सीट के तहत नहीं गिना जाएगा। वहीं, जस्टिस भट्ट ने एक अलग जजमेंट में लिखा कि ओपन/ जेनरल कैटेगरी कोई कोटा नहीं है। बल्कि यह सभी महिलाओं व पुरुषों के लिए उपलब्ध है। सबके लिए एक समान है। मेरिट के आधार पर कोई भी कैंडिडेट इसमें जगह पा सकता है। फिर चाहे उसे आरक्षण का लाभ ही क्यों न प्राप्त हो।
क्या था मामला
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश उत्तर प्रदेश पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा की एक महिला अभ्यर्थी सोनम तोमर की याचिका पर आया है। सोनम ने याचिका में कहा था कि वह ओबीसी महिला श्रेणी से है, लेकिन उसे सामान्य श्रेणी (महिला) के तहत चयनित अभ्यर्थी से ज्यादा अंक मिले हैं। लेकिन सोनम को वह नौकरी नहीं दी गई।
इस पर कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सामान्य श्रेणी (महिला) के तहत चयनित अभ्यर्थी को मिले अंक (274.8928) से ज्यादा पाने वाली सभी ओबीसी महिला उम्मीदवारों को उत्तर प्रदेश पुलिस में कॉन्स्टेबल की नौकरी दी जानी चाहिए।
Post a comment