जिस तरह पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है और जिस तरह भाजपा अध्यक्ष नड्डा के काफिले पर हमला किया गया, गाड़ियों की तोड़-फोड हुई, भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारियों को निशाना बनाया गया, वह सर्वथा अनुचित, निंदनीय और आपत्तिजनक है. साथ ही प्रजातंत्र की मान्यताओं के विपरीत भी है. प्रजातांत्रिक राजनीति में हिंसा को कोई स्थान नहीं है. लड़ाई विचारधाराओं की होती है. हर दल को देश-राज्य के विकास का खाका अपने-अपने विचारधारा के अनुरूप, अपने-अपने तरीके से जनता के सामने रखने का अधिकार है. विभिन्न दलों में सत्ता के लिए एक स्वस्थ प्रतियोगिता होती है. दूसरे के काफिले पर हमला करो, उनकी गाड़ियों को तोड़ो या नेताओं पर हमला हो यह राजनीति नहीं कुनीति है. यह आदमकालीन असभ्य व बर्बर समाज का तरीका यदि आज देश को एक जमाने में राजनीतिक, समाजिक, सांस्कृतिक दृष्टि से दिशा देने वाले राज्य में हो रहा है, तो यह एक तरह से उस राज्य के लिए शोकांतिका से कम नहीं है. यह बंगाल के आज तक की छवि, कीर्ति व प्रतिष्ठा के प्रतिकूल है. यह सीधे-सीधे वहां के सत्तासीन दल की कमी है. कारण कानून व्यवस्था सही रखना उसकी जिम्मेदारी है कुछ भी बयान देकर ममता इस जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती. वह राज्य में आने वाले हर व्यक्ति के सुरक्षा की जिम्मेदार है. इसलिए ऐसी हिंसात्मक कारगुजारी के लिए जिम्मेदार हर व्यक्ति को उन्हें ढूंढ़ निकालना चाहिए और उन पर कानून के हिसाब से सख्त से सख्त करवाई कर, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य में कानून व्यवस्था से इस तरह खुले आम खिलवाड़ न हो. ममता तो इस तरह की राजनीति की वाम दलों के शासनकाल में बंगाल में भुक्त-भोगी रही है. अब उनके ही राज्य और शासनकाल में दूसरे दलों के कार्यकर्ता वही सब भोगें तो वह किस तरह से इसे सही ठहरा पाएंगी? ऐसा व्यवहार तो देश के किसी भी कोने से आनेवाले आम व्यक्ति के साथ नहीं होना चाहिए. यह अक्षम्य अपराध है. आज जो कोलकाता में हुआ वह देश की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष और वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ हुआ. इसी से समझा जा सकता है कि वहां कानून व्यवस्था की हालत कितनी दयनीय है. इससे यह साबित होता है कि भाजपा की ओर से जो उनके कार्यकर्ताओं के साथ बंगाल में जान से मार देने का, उनके साथ मारपीट होने का और उन्हें उत्पीड़ित करने का आरोप लगाया जा रहा है वह गलत नहीं है. आवश्यक है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनके राज्य में बढ़ रही इस अराजक अवस्था पर अपना ध्यान तुरंत केन्द्रित करें. प्रजातंत्र की उदात्त परम्पराओं के अनुरूप एक स्वस्थ राजनीतिक माहौल में इस चुनावी वर्ष में विभिन्न दलों में सत्ता के लिए प्रतियोगिता हो, यह सुनिश्चित करें. वह माकपा को हमेशा कटघरे में खड़ा करती रही है, अब उनकी भी सत्ता का दूसरा टर्म पूरा हो रहा है, इस दौरान वह ऐसा कुछ नहीं कर पायीं जिससे यह लगे कि वह कोलकाता या पश्चिम बंगाल का स्वर्णिम अतीत बहाल करने के लिए कुछ कर रही है. कम से कम बंगाल का लालू प्रसाद बनने और बंगाल को लालू काल का बिहार तो न बनने दें. यह अनायास ही नहीं है कि आज चारों ओर से भाजपा बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर रही है, यदि स्थिति ऐसी ही बेलगाम रही तो कुछ भी हो सकता है. वैसे भी उनकी हालत राज्य में अतीत की तरह मजबूत नहीं बताई जा रही है, कारण धरातल पर कोई काम नहीं हुआ है, उनकी पार्टी में भी आयाराम-गयाराम चरम पर है. बगावत हो रही है, ऐसे हालातों के बीच आराजकता का भी बोल-बाला हो गया तो उनकी सत्ता की लुटिया डूबना तय है. इसलिए हिंसा नहीं स्वस्थ राजनीति हो, कानून का डर हो यह सुनिश्चित करे.
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