उत्तर प्रदेश के बारे में अक्सर कहा जाता है कि बच्चे को राजनीति विरासत में मिलती है. इस जागरूकता के चलते आपको राज्य के घर घर में नेता नजर आयेंगे. लेकिन इससे प्रदेश का भला नहीं हुआ. देश की राजनीति के हर रंग यहां खिले और आज भी मौजूद हैं, लेकिन प्रदेश में विकास की जो गंगा प्रवाहित होनी चाहिये थी, वह नहीं हो पाया. कारण जाति, धर्म, अगड़ा - पिछड़ा का खेल खेल कर जिस तरह की राजनीति दशकों तक यहां का चरित्र रही उसमे विकास नहीं, बल्कि येन केन प्रकारेण सत्ता प्राप्ति ही उसका मुख्य लक्ष्य गया. इसके चले परिवारवाद,भ्रष्टाचार की, अल्पसंख्यक परस्ती की राजनीति और अपराधियों के गठजोड़ की ऐसी ऐसी इबारतें लिखी गयीं जिससे, विकास पीछे छूट गया. प्रदेश में अपार संभावना होने के बावजूद लोग देश- विदेश में रोटी रोजगार के लिए ठोकर खाने को मजबूर हुए और राज्य विभाजनकारी राजनीति और देश के दूसरे राज्यों को मनुष्य बल आपूर्ति करने वाला केंद्र बन गया . 2017 में राज्य में भाजपा की सरकार बनी और योगी आदित्य नाथ के हाथ राज्य की बागडोर गयी. उसके बाद राज्य में दशकों से जड़ जमाये बैठी नकारात्मक्ताओं के खिलाफ जंग का एलान हुआ और विकास किस तरह होना चाहिए और उसका प्रसार कैसे व्यवस्था के हर अंग तक होना चाहिए, यह राज्य की जनता को पहली बार पता चला. आज चाहे कानून व्यवस्था का मुद्दा हो, सड़क निर्माण हो, पर्यटन और धार्मिक स्थलों का विकास हो, रोजगार निर्माण हो ,निवेश को आकर्षित करने की बात हो, संगठित अपराध की कमर तोड़ने की बात हो जिस तरह का कम योगी राज में उत्तर प्रदेश में हो रहा है राज्य के अब तक के इतिहास में नहीं हुआ था. एक साथ इतने काम और उनको मिल रहा राज्य की जनता का प्रतिसाद व देश और दुनिया की वाह वाही निस्संदेह विपक्ष की बेचैनी बढ़ा रही है और अब जबकि आगामी चुनाव की निकटता बढ़ रही है तो हलचल भी तेज हो गयी है. उक्त नकारात्मक्ताओं के जिम्मेदार कांग्रेस, सपा और बसपा अब फिर से सक्रिय हो रहे और बदले युग में पुरानी घिसी पिटी सोच के साथ पुनः मैदान में हैं और सब एकला चलो रे का नारा बुलंद कर रहे हैं.
योगी युग के अब तक के समय में इन सबका एक ही काम रहा है कि उनके हर निर्णय में और केंद्र की भाजपा सरकार के हर निर्णय में मीनमेख निकालना कारण इनके शासन काल में जिन बातों के बारे में सोचा नहीं गया या सिर्फ कागजों पर ही बनाया गया. आज वह सब हकीक़त में तब्दील हो गया है. इनके सत्तासीन रहने पर जो माफिया खुलेआम घूम रहे थे, आज पलायन पर हैं या अन्दर हैं उनके अवैध निर्माण धुल धूसरित हैं और प्रदेश में निवेश के लिए उद्यमी लाइन लगाए हुए हैं. एक जमाने में अपने आपको राज्य का सब कुछ मानने वाले आजम जैसे लोगों से सरकारी जमीन वापस ली जा रही हैं. स्वाभाविक है योगी राज के इन अच्छ कार्यों से बहुतों के पेट में मरोड़े उठ रही है. कारण उनकी राजनीतिक दुकान बंद होने कगार पर हैं तो अब ये नए तेवर के साथ भाजपा और योगी का मुकाबला
करने के लिए मैदान में हैं. अब यह उत्तरप्रदेश के अावाम की जिम्मेदारी है की वह इनकी असलियत जो उसके समाने दिन के उजाले की तरह उजागर है उसे समझे और सुशासन अौर कुशाशन के फर्क को समझे. जाति धर्म और अगले पिछड़े के खेल ने उसे कुछ नहीं दिया, बल्कि राज्य को बीमारू का खिताब दिया तो अब जब यह ख़िताब हट रहा है और आज उत्तर प्रदेश भी देश के विकास में अपनी भूमिका निभाने की राह पर तेजी से चल रहा है, तो उसमे कोई व्यवधान ना खड़ा हो. इसी में उत्तर प्रदेश और उसकी अवाम का और प्रकारांतर से देश का भला है.
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