पटना
बिहार की राजनीति में अगले 4 दिन बेहद निर्णायक हैं। मंत्रिमंडल विस्तार, विधान परिषद् की मनोनयन वाली 12 सीटें और चुनाव वाली 2 सीटें- इन 3 मुद्दों पर NDA का निर्णय सामने आना है और उससे राजनीति ठंडी या गरम होगी। फिलहाल विधान परिषद की चुनाव वाली दाे सीटों को लेकर चल रहा गतिरोध कुछ संभलता दिख रहा है।
JDU मंत्री डॉ. अशोक चौधरी को MLC चुनाव में उतारने पर अड़ा नहीं रहा तो BJP अपने दो MLC के इस्तीफे से खाली हुई इन सीटों पर अपने कोटे से ही नाम देगी। एक नाम मंत्री और VIP प्रमुख मुकेश सहनी का होगा और दूसरा मिथिलांचल के घनश्याम ठाकुर का। 18 जनवरी तक इस चुनाव के लिए नामांकन होना है और स्पष्ट बहुमत के कारण NDA की दोनों सीटों पर जीत भी तय है। भाजपा के सुशील मोदी और विनोद नारायण झा के बिहार विधान परिषद से इस्तीफा देने के बाद खाली सीटों के लिए नामांकन 11 जनवरी से ही होना था, लेकिन खरमास के कारण अब तक किसी ने नामांकन नहीं किया है।
अाज से शुभ काम की शुरुआत होगी और संभव है कि नामांकन भी शुरू हो जाए। परिषद की इन दो सीटें भाजपा की थीं, इसलिए पार्टी इसे JDU के खाते में डालने को तैयार नहीं है। JDU को मंत्री डॉ. अशोक चौधरी के लिए एक सीट चाहिए थी, लेकिन वह विनोद नारायण झा वाली सीट लेने से हिचक रहा है। भाजपा के विनोद नारायण झा ने MLA चुनाव जीतने के बाद 11 नवंबर 2020 को इस्तीफा दिया था।
इनका टर्म 21 जुलाई 2022 तक था। वहीं राज्यसभा भेजे जाने के कारण सुशील कुमार मोदी ने 9 दिसंबर 2020 को MLC पद से इस्तीफा दिया था। इनका टर्म 6 मई 2024 तक था। मतलब, विनोद नारायण झा वाले टर्म में 18 महीने और सुशील मोदी वाले टर्म में 41 महीने बचे हैं। दोनों सीटों के लिए चुनाव होना तो है, लेकिन वोटिंग अलग-अलग होनी है। चुनाव की नौबत आई तो सभी 243 MLA को दोनों को अलग-अलग वोट देना होगा। जीत 122 पर निर्धारित होगी और सत्तारूढ़ NDA के पास 125 विधायक हैं। यानी, सत्ता की जीत पक्की है। सत्तारूढ़ NDA के घटक VIP के अध्यक्ष मुकेश सहनी भाजपा कोटे से मंत्री बन चुके हैं। MLA चुनाव हार चुके सहनी को सदन तक पहुंचाना भी भाजपा की जिम्मेदारी है।
चुनाव में NDA की सीटें भाजपा-जदयू में बंटी थीं। इनमें जदयू ने HAM को और भाजपा ने VIP को अपने खाते से सीटें दी थीं। सहनी को नन मैट्रिक हैं और राज्यपाल के मनोनयन वाली सीटों पर दावेदारी के लिए उनके पास किसी क्षेत्र की विशेषज्ञता नहीं है, इसलिए चुनाव में उतरना उनकी मजबूरी है। भाजपा उन्हें इसी कारण चुनाव में उतारने को मजबूर है।
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