तोमर बोले- जो प्रस्ताव दिया उससे बेहतर कुछ नहीं | आंदोलन की पवित्रता नष्ट हो जाती है तो निर्णय नहीं होता
नई दिल्ली
केंद्र सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच शुक्रवार को हुई 11वें दौर की वार्ता भी बेनतीजा ही समाप्त हो गई। यहां तक कि इस बैठक में अगली बैठक को लेकर कोई तारीख तक तय नहीं हो सकी। ऐसे में साफ है कि अब दोनों पक्ष अपने स्थान से पीछे हटने को राजी होते नहीं दिख रहे हैं।
बहरहाल, बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि अगली बैठक के लिए कोई तारीख तय नहीं की गई; सरकार ने यूनियनों को दिए गए सभी संभावित विकल्पों के बारे में बताया, उनसे कहा कि उन्हें कानूनों को स्थगित करने के प्रस्ताव पर अंदरूनी चर्चा करनी चाहिए।
वहीं दूसरी ओर किसान नेताओं ने कहा कि ये बैठक बेशक लगभग पांच घंटे तक चली हो, लेकिन दोनों पक्ष 30 मिनट से कम समय तक आमने-सामने बैठे।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यूनियनों से कहा कि यदि किसान तीनों कृषि कानूनों को स्थगित करने के प्रस्ताव पर चर्चा करना चाहते हैं तो सरकार एक और बैठक के लिए तैयार है। इसके साथ ही कृषि मंत्री तोमर ने सहयोग के लिए यूनियनों को धन्यवाद दिया; और कहा कि कानूनों में कोई समस्या नहीं है लेकिन सरकार ने किसानों के सम्मान के लिए इन कानूनों को स्थगित रखे जाने की पेशकश की।
कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि भारत सरकार की कोशिश थी कि वो सही रास्ते पर विचार करें, जिसके लिए 11 दौर की वार्ता की गई। परन्तु किसान यूनियन क़ानून वापसी पर अड़ी रही। सरकार ने एक के बाद एक प्रस्ताव दिए। परन्तु जब आंदोलन की पवित्रता नष्ट हो जाती है तो निर्णय नहीं होता।
हमने किसान यूनियन को कहा कि जो प्रस्ताव आपको दिया है- 1 से 1.5 वर्ष तक क़ानून को स्थगित करके समिति बनाकर आंदोलन में उठाए गए मुद्दों पर विचार करने का प्रस्ताव बेहतर है, उस पर फिर से विचार करें।
तोमर के अनुसार हमने कहा कि आज वार्ता को पूरा करते हैं आप लोग अगर निर्णय पर पहुंच सकते हैं तो आप लोग कल अपना मत बताइए। निर्णय घोषित करने पर आपकी सूचना पर हम कहीं भी इकट्ठा हो सकते हैं। वार्ता के दौर में मर्यादाओं का तो पालन हुआ परन्तु किसानों के हक़ में वार्ता का मार्ग प्रशस्त हो, इस भाव का सदा अभाव था इसलिए वार्ता निर्णय तक नहीं पहुंच सकी। इसका मुझे भी खेद है। भारत सरकार PM मोदी जी के नेतृत्व में किसानों और गरीबों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है और रहेगी... विशेष रूप से पंजाब के किसान और कुछ राज्यों के किसान कृषि क़ानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।
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