नई दिल्ली
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि पूजा पद्धति, कर्मकांड कोई हो लेकिन सबको मिलकर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि अंतर का मतलब अलगाववाद नहीं है। 'मेकिंग ऑफ ए हिंदू पेट्रियॉट-बैकग्राउंड ऑफ गांधीजीज हिंद स्वराज' नाम की अंग्रेजी पुस्तक का विमोचन करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि जब तक मन में यह डर रहेगा कि आपके होने से मेरे अस्तित्व को खतरा है और आपको मेरे होने से अपने अस्तित्व पर खतरा लगेगा तब तक सौदे तो हो सकते हैं लेकिन आत्मीयता नहीं। उन्होंने कहा कि अलग होने का मतलब यह नहीं है कि हम एक समाज, एक धरती के पुत्र बनकर नहीं रह सकते। किताब का विमोचन करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि किताब के नाम और मेरा उसका विमोचन करने से अटकलें लग सकती हैं कि यह गांधी जी को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि महापुरुषों को कोई अपने हिसाब से परिभाषित नहीं कर सकता। यह किताब व्यापक शोध पर आधारित है और जिनका इससे विभिन्न मत है वह भी शोध कर लिख सकते हैं। संघ प्रमुख ने कहा कि गांधीजी ने कहा था कि मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है। मैं अपने धर्म को समझकर अच्छा देशभक्त बनूंगा और लोगों को भी ऐसा करने को कहूंगा। गांधीजी ने कहा था कि स्वराज को समझने के लिए स्वधर्म को समझना होगा। स्वधर्म और देशभक्ति का जिक्र करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि हिंदू है तो उसे देशभक्त होना ही होगा क्योंकि उसके मूल में यह है।
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