एक समय ऐसा था, जब मुंबई और आसपास की नपा - मनपाओं में कोरोना के कहर का ऐसा मंजर नजर आ रहा था कि राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक और इस क्षेत्र का हर रहिवासी परेशान था, चिंतित था कि यह डरावना सूरते हाल कब बदेलागा. मुंबई को लेकर विशेष चिंता थी क्योंकि मुंबई सहित उसके आस पास का इलाका देश की औद्योगिक गतिविधियों का केंद्र है, जिस तरह का सन्नाटा मुंबई और आसपास की नपाओं और मनपाओं में नजर आता था.जिस तहर सारे आर्थिक क्रिया कलाप बंद हो गए थे,वह देशव्यापी चिंता की बात हो गयी थी.कारण मुंबई और आसपास का इलाका देश भर की एक बड़ी आबादी का रोजी रोटी का केंद्र है, बन्दी से जो लोगों का रोजगार बंद हुआ और उसके बाद जो भगदड़ मची और देश और दुनियां में सुर्खियां बनी ऐसी माहौल में सरकार और प्रशासन के प्रयास और मुंबई मनपा आयुक्त चहल जैसे अधिकारियों की कर्तव्य परायणता, दूर दृष्टि और कुशल प्रबंधन तथा मेहनत ने और स्वास्थ्य सेवाओं के विकेद्रीकरण ने और पुलिस बल की सतर्कता और सक्रियता ने मुंबई सहित पूरी राज्य का आलम बदल दिया, जिसके लिए ये समर्पित अधिकारी सराहना के पात्र हैं. आज मुंबई और आसपास के अपनगरों सहित पूरा राज्य कोरोना की विभीषिका से बाहर आ रहा है. खुशी की बात यह है कि कोवीशील्ड को आपत इस्तेमाल की मंजूरी मिल गयी है, आगे और कई वेक्सीन को भी हरी झंडी मिल सकती है. अब कोरोना से दो-दो हाथ करने का अंतिम दौर है और अब राज्य और मुंबई तथा देश के हर जन को और सावधानी बरतने की जरूरत है. कारण धीरे धीरे मुंबई का जनजीवन सामान्य हो रहा है, लेकिन अभी तक आम लोगों के लिए लोकल शुरू नहीं हो पाई है. कारण अभी भी महामारी का खतरा बना हुआ है ,तो अब जबकि वैक्सीन कतार में है, उसको लेकर ड्राई रन और कई तैयािरयां हो रही हैं, हमारा यह कर्तव्य है कि हम ऐसा कुछ ना करें, जिससे हम इस महामारी के प्रसार को बढ़ाने का कारण बन सकते हैं. भले ही वैक्सीन का लगना शुरू हो सकता है. हर्ड ईम्युिनटी विकसित होने में समय लगेगा. हम सबको ध्यान दने की जरूरत है. वैक्सीन को लेकर फैलाई जा रही अफवाहों से और आधारहीन बातों से भी सावधान रहने की जरूरत है.
कोई धार्मिक कारण बता कर, कोई कुछ और हवा हवाई जानकारी सार्वजनिक कर लोगों में वैक्सीन को लेकर ग़लतफहमी पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. हमें इन सभी विधानों पर ध्यान ना देकर सरकार जो कह रही है और सरकार द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ जो कह रहे हैं, उस पर ध्यान देना है. अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक समुदाय के उन धािमक नुमाइंदों से भी यही उम्मीद की जाती है कि उनका काम लोगों का ऐसा प्रबोधन करना है, जिसे वह स्वस्थ रहे और सुरक्षित रहें और उनकी आध्यात्मिक और सांसारिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो. उन्हें सुनी-सुनाई बातों को आधार बनाकर बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहिए और भोली भाली जनता को गुमराह नहीं करना चाहिए. कारण इस वक्त हर वह रास्ता अपनाने की जरूरत है, जिससे हमारा देश इस महामारी से मुक्त हो. उन्हें सरकार की संवेदनशीलता और समझदारी पर सवाल खड़ा कर एक और नई परेशानी नहीं खड़ी करनी चाहिए. वैसे सरकार ने ऐसी उपद्रवी और विघ्न पैदा करने वाले तत्वों की गंभीर दखल ली है. उन्हें आगाह किया गया है कि वे अपनी आधारहीन बयान बाजियां बंद कर दें, इससे मान गए तो अच्छा नहीं तो उन्हें अपने आपत्तिजनक बयानों के गंभीर परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं. इसका भान इन्हें रखना चाहिए. यह आपदा का समय है, आपदा से लड़ने में निर्णायक भूमिका निभानी वाले योद्धाओं का आभार व्यक्त करते हुए, जिसका जो काम है उसे करने देना चाहिए. धािमक प्रवक्ता, चिकित्साविद् न बने. वह जिसका काम है उसी को करने दें, वह भी आपके बीच का ही हैं और ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जिससे आपकी आस्था अौर आपके विश्वास पर कोई संकट आये या वह खतरे में पड़े.
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