मुंबइ
अंतिम संस्कार की पुरूष प्रधान संस्कृति को पीछे छोड़ते हुए बारह लड़कियों ने अपने पिता की अर्थी को कंधा देकर उन्हें अंतिम विदाई दी। वाशिम जिले के मनोरा तालुका में शेंदुरजाना गांव में हजारों ग्रामीणों ने इस घटना का प्रत्यक्ष अनुभव किया। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रसार करने वाले परोपकारी सखाराम गणपतराव काले का गुरुवार को वृद्धावस्था में निधन हो गया था। उनका बेटा नहीं था, लेकिन बेटियों ने इस कमी को महसूस नहीं होने दिया।
वाशिम जिले में शेंदुरजाना निवासी सखाराम काले ने 92 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। काले की 12 बेटियां है, लेकिन कोई बेटा नहीं है, ऐसे में उनकी बेटियों ने अंतिम संस्कार के लिए अपने पिता का पार्थिव शरीर को अपने कंधों पर श्मशानघाट तक पहुंचाया। उसके बाद लड़कियों ने चिता को आग लगाई।
सखाराम काले का जन्म 14 सितंबर 1934 को मनोरा तालुका के शेंदुरजाना में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उन्हें बचपन से ही सामाजिक कार्यों का शौक था। अपने चचेरे भाई नामदेवराव काले के साथ उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा शुरू की। वह इस लक्ष्य से प्रेरित थे कि गांव के बच्चों को गांव में ही उच्च शिक्षा मिलनी चाहिए। आज आप्पापस्वामी शिक्षण संस्थान सखाराम और नामदेवराव काले की उचित योजना का परिणाम हैं।
सखाराम काले अपनी उम्र के कारण पिछले कुछ दिनों से बीमार थे। पितृसत्तात्मक संस्कृति को तोड़ते हुए इन बारह लड़कियों ने अपने पिता को अंतिम संस्कार किया। इस घटना को देखकर कई लोगों की आंखें नम हो गईं।
Post a comment