प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के उषा काल से जिस 'मेक इन इंडिया' अभियान का शंखनाद किया था और कोरोना की त्रासदी को अवसर में बदलने का आहवान करते हुए आत्मनिर्भर भारत के अभियान का आगाज करते हुए लोकल के लिए वोकल होने का जो नारा बुलंद किया, उसको यथोचित प्रतिसाद देते हुए हमारे उद्यमियों और शोधार्थियों ने जो उपलब्धि हासिल की उसका डंका आज दुनिया में बज रहा है. यह हर देशवासी के लिए गर्व की बात है. मोदी युग के पहले कांग्रेस राज में हमारी हर चीज के लिए विदेश पर निर्भर रहने की मानसिकता बन गयी थी. हम किसी चीज को खुद बनाने की मेहनत-मशक्कत करने की बजाय उसके लिए बाहर दौड़ लगाने के आदी हो गए थे. हम निर्यात पर निर्भर थे .उक्त सरकारों की नीतियों से हमारे अन्दर यह हीन भावना जड़ जमा चुकी थी कि हम ऐसा कुछ नहीं कर सकते, जैसा गोरी चमड़ी वाले कर सकते हैं. हमारे लोग बड़े फक्र यह कहते मिल जाते हैं कि अमुक वस्तु जो वह उपयोग कर रहे हैं. वह मेड इन इंग्लैंड,फ्रांस या अमेरिका है. विदेश में बना समान प्रयोग करना गर्व की बात है यह एक तरह से प्रतिष्ठा की बात बनी हुई है.यह मिथक नहीं टूटा, क्योंकि हमने अपने उत्पादों को लेकर वैसा कुछ नहीं किया, जिससे उसकी गूंज भी दुनिया में हो. हमें हमारे चारो ओर व्याप्त परिवेश ने यही सिखाया कि हमारे उद्यमी सिर्फ घटिया माल बना सकते है और अच्छा तो यूरोप अमेरिका बनाता है विदेशी कंपनियां हमें माल बेचकर मोटा मुनाफ़ा कमायें और मोटा बने तो हमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन अपने लोग अच्छा और सस्ता उत्पाद भी बाजार में लायें तो उसमे मीन मेख निकलते हैं, उन्हें चोर कहते हैं। हमारे अपने ही लोग उसमे कमियां गिनाने लगते हैं, आन्दोलन छेड़ देते हैं. उदाहरण के लिए पतंजलि को ही लें. वे अच्छी गुणवत्ता वाला सस्ता कई तरह के उत्पाद उपलब्ध करा रहे हैं.उनके काम से बड़ी - बड़ी बहु देशीय कंपनियों के पसीने छूट रहे हैं, लेकिन हमारे लोग उनकी कमी ही ढूढ़ते रहे हैं, हमारा यह ओछापन देश के हर उत्पादों को लेकर है. जबकि हमारे कई उत्पाद अनेकों कंपनियों के ऐसे हैं, जिनका दुनिया में डंका बज रहा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल से देशी माल घटिया है यह मिथक तोड़ने का काम हो रहा है और स्थानीय उत्पादों के लिए वोकल होने पर जोर देने के साथ यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है कि वे दुनिया में अपने श्रेणी के सर्वोत्तम उत्पाद के साथ प्रतियोगिता में उससे बीस साबित हों. आज सुरक्षा क्षेत्र में हमारे उत्पादों की जो मांग हो रही है. कोरोना काल में जिस तरह हमने दवाइयां, पीपीई किट और अन्य साजो समान दुनिया को उपलब्ध कराया और आज जिस तरह हमारी वैक्सीन की मांग दुनिया में हो रही है। अब तक 25 देश कतार में हैं, जबकि दुनिया के बाजार में और भी कई दावेदार हैं. यह जाहिर करता है कि देश पुराने मिथकों से ,पूर्वाग्रहों से बाहर आ रहा है और उसका अपने उत्पादों पर और दम पर भरोसा हो रहा है. यह एक शुभ संकेत है यह मोदी युग के सबसे बड़ी देन है. हमें एहसास रहा है कि हम भी हर ऐसा काम कर सकते है, उत्पाद बना सकते है बशर्ते हममें वैसा करने की इच्छाशक्ति हो. हमारे पास ज्ञान का कच्चा माल पहले ही था नहीं थी तो इच्छाशक्ति जो हमें उस कच्ची माल को शोध और तकनीक के बलबूते एक ऐसे उत्पाद में रूपांतरित करता है, जिसकी दुनिया वाहवाही करती है. भारत अब उस दम और इच्छा शक्ति का प्रदर्शन व्यवस्था के हर अंग पर करने लगा है और इस नयी शक्ति के बलबूते नया भारत दुनिया के नक़्शे पर वह देदीप्यमान मुकाम हासिल करेगा जिसका सपना हर भारत वासी वर्षों से देख रहा है. इसके लिए जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री ने कहा है, आगामी दशक काफी महत्वपूर्ण है तो आइये स्वदेशी अपनाये और स्वदेशी बढ़ाएं देश का डंका दुनिया में बजाएं.
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