बच्चों के प्रति यौन हिंसा, शोषण करने वालों के खिलाफ कड़े कानून बनाए गए, पर उनका भी कोई खास असर नजर नहीं आता। कई घटनाओं को लेकर उठे व्यापक जनाक्रोश से ऐसा जान पड़ा कि अब समाज का नजरिया कुछ बदलेगा, मगर स्थिति पहले से शायद कुछ और बिगड़ी ही है। इससे बड़ी शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि स्कूल परिसरों तक में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं। वे स्कूल, जहां बड़ी उम्मीद के साथ माता-पिता अपनी बच्चियों को भेजते हैं कि वे पढ़-लिख कर स्वावलंबी बनेंगी, समाज और देश को दिशा देने में योगदान कर सकेंगी, वही स्कूल उनका यौन शेषण करें, तो भला उनकी सुरक्षा का भरोसा किस पर करें। यह तब है, जब बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने का नारा पिछले कुछ सालों से देश में बड़े जोरशोर से गूंज रहा है। शिक्षक को गुरु का दर्जा प्राप्त है और गुरु को ईश्वर से भी ऊपर का, पर जब वही गुरु राक्षसी वृत्तियों से जकड़ा हो, तो उससे लड़कियां तो क्या, पूरा समाज ही खतरे में पड़ जाता है। बिहार के एक निजी स्कूल मालिक और प्राचार्य ने जिस तरह अपने ही स्कूल की एक विद्यार्थी का लगातार यौन शेषण किया, वह पूरे शिक्षा जगत के लिए शर्म का विषय है। गौरतलब है कि संबंधित स्कूल के प्राचार्य ने लड़की को अपने एक सहायक की मदद से अपने दफ्तर में बुलाया और एकांत में उसका यौन शोषण किया। उसके साथ आपत्तिजनक तस्वीरें भी उतारीं, जिन्हें दिखा कर वह लंबे समय तक उसका शोषण करता रहा। बाद में जब उस लड़की की तबियत खराब हुई तो डॉक्टर ने उसके गर्भवती होने की पुष्टि की। माता-पिता ने इस संबंध में पुलिस के पास मामला दर्ज कराया। डीएनए जांच की गई, तो प्राचार्य को दोषी पाया गया। अब पटना की एक अदालत ने उस प्राचार्य को सजा-ए-मौत और एक लाख रुपए का अर्थदंड सुनाया है। प्रचार्य के सहयोगी को आजीवन कारावास और पचास हजार रुपए का जुर्माना भरना होगा। अदालत ने इस घटना को दुर्लभतम और जघन्यतम अपराध माना है। यह निस्संदेह बहुत क्षोभ का विषय है, मगर इससे कितने संस्थान और लोग सबक लेंगे, देखने की बात है। हालांकि यह अपने तरह की नई घटना नहीं है। इससे पहले हरियाणा के कुछ सरकारी स्कूलों में भी अध्यापकों द्वारा लड़कियों के यौनशोषण का मामला उजागर हुआ था। बिहार के ही कुछ महिला आश्रयगृहों, छात्रावासों में उनके संचालकों-संचालिकाओं द्वारा लड़कियों के यौन शोषण का मामला सामने आया था। करीब दो साल पहले एक आश्रयगृह में हुए यौन शोषण के खिलाफ देश भर में निंदा और विरोध की आवाजें उठी थीं। मगर हैरानी है कि उससे भी कुछ सीखने की जरूरत नहीं समझी गई। गौरतलब है कि ताजा मामला भी लगभग उसी समय का है, जब अश्रयगृह के यौनशोषण का मामला तूल पकड़े हुए था। लगता है, कड़े कानून और घटनाओं को लेकर चले आंदोलन वगैरह आपराधिक मानसिकता वाले लोगों में भय भरने, कुछ सीखने का मौका देने के बजाय प्रेरणा का काम करते हैं। मगर शिक्षक जैसे लोगों से फिर भी ऐसी नैतिकता की अपेक्षा तो बनी रहती है कि वे एक बेहतर समाज बनाने में योगदान करेंगे। विडंबना है कि इस अपेक्षा पर कालिख पोत कर कुछ लोग उसे धुंधलाने का प्रयास करते देखे जाते हैं।
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