आज महिला दिवस है, आज देश और दुनिया में यह दिन बड़े उल्लास से मनाया जाएगा, महिलाओं के कल्याण के लिए बड़ी-बड़ी बातें होंगी, इसके बाद हम सब भूल जायेंगे, फिर रोज महिआलों पर नित नए अत्याचार सुर्खियां बनेंगी, उसके लिए नारेबाजी होगी, आंदोलन होंगे. आखिर यह विरोधाभास कब तक चलता रहेगा, इस बारे में हमें ग्ांभीरता पूर्वक विचार करना होगा. कब तक हमारे समाज में अबोध, नादान बालिकाओं के साथ बलात्कार जैसी घटनाएं होती रहेंगी और हमें नर रूप में पशु से भी गयी गुज़री मानसिकता वाले, विकृत दानवों के दर्शन होते रहेंगे. इस पर समाज को गम्भीरता पूर्वक विचार करने का समय आ गया है. आज भी हमारे समाज में लड़का-लड़की का भेदभाव होता है, आज भी दहेज़ की बिल बेदी पर काफी तादाद में महिलायें कुरबान हो रही हैं या आत्महत्या कर रही हैं. अभी कुछ दिन पहले अहमदाबाद में एक बालिका के आत्महत्या करने की घटना काफी ताजी है, जिसने हर सोचने समझने वाले व्यक्ति को स्तब्ध कर दिया है. आज भी लड़कियों का खुलेआम आना-जाना जोखिम से भरा है. आखिर यह सूरते हाल कब बदलेगा? सरकार ने नियम- कानून बना दिए, लड़कियों को पढ़ाया- लिखाया जाय. इसके लिए हर तरह की सहूलियत प्रदान की गयी है. इसके बाद भी िस्थति अभी भी ठीक है यह नहीं कहा जा सकता. कारण अभी लोगों की बेटा और बेटी को लेकर बहू और बेटी को लेकर मानसिकता नहीं बदली है. साथ ही लोगों में संस्कारों की भयंकर कमी है. एक लड़का एक लड़की से ना सुनना ही नहीं चाहता यदि ना हो गया तो वह उसकी जान लेने पर उतारू हो जाता है. तेज़ाब फेंक कर उसे विकृत करने का प्रयास होता है. इस दृष्टिकोण और सोच में बदलाव जरूरी है. कारण महिलाओं को लेकर सुरक्षा की समस्या आज देश में सबसे बड़ी समस्या है जहां देखो, वहीं बलात्कार हत्या और हमले की बातें सामने आ रही हैं. लोग सजा भी पा रहे हैं, कार्रवाई भी हो रही है, फिर भी लोग बाज क्यों नहीं आ रहे हैं, यह सबसे बड़ी समस्या है, ऐसा नहीं है कि सुधार नहीं हो रहा है, सोच बदली है इसके चलते आज जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं की उल्लेखनीय और काबिले तारीफ़ भागेदारी देखने को मिल रही है, लेकिन उसकी गति काफी धीमी है और शहर और गांव में काफी फर्क है और सुरक्षा की समस्या सब जगह है, कहीं ज्यादा तो कहीं कम है. इस अोर सबको ध्यान ॑देने की जरूरत है. सरकार काम कर रही है, सामाजिक संगठन काम कर रहे हैं, लेकिन उसके साथ - साथ समाज को भी आगे आने और अपने बच्चों में शुरू से ही यह संसकार डालने की नितान्त आवश्यकता है कि लड़का और लड़की समान हैं और हर लड़के को कैसे लड़की का सम्मान करना चाहिए और अब जबकि वह हर महिला जिसे अवसर मिला है, उसने यह साबित किया है कि वह हर दृष्टि से किसी भी मामले में पुरुष से उन्नीस नहीं है, बल्कि इक्कीस है. उन क्षेत्रों में भी जहां एक जमाने में पुरूषों का एकाधिकार था, वहां भी अपना परचम लहराया है,अपने कार्यों से अपने परिवार का, अपने गांव, शहर, राज्य और देश का मान बढ़ाया है, तो अब हमको यह एहसास हो जाना चाहिए कि लड़का और लड़की में कोई फर्क नहीं है. इसके लिए हर समाज को और भावी अभिभावक को यह गांठ बाधना होगा कि वह ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जिससे लड़का और लड़की में भेदभाव ना हो. यह सुनिश्चित करेंगे तभी बात बनेगी, सिर्फ सरकार पर दृष्टि डाल कर बैठने से काम नहीं चलेगा, बल्कि सरकार के साथ -साथ समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी. कारण जब हर परिवार कोई भेदभाव नहीं करेगा, उसका हर सदस्य उसे समानता का दर्जा देगा, उसे समानता का अवसर मिलेगा तो फिर असुरक्षा की समस्या का भी अपने आप इलाज हो जायेगा. हम सही दिशा में जरूर जा रहे हैं, परन्तु बहुत धीमी गति से जा रहे हैं. हमें तेज चलने की जरूरत है. जिससे मंजिल जल्दी मिले और हमारी आधी शक्ति जिसका पूरा -पूरा उपयोग अभी भी देश के विकास में नहीं हो रहा पा रहा है, वह हो सके और यह कहना बंद हो कि चले चलो वो मंजिल अभी नहीं आई.
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