दिल्ली की साकेत कोर्ट ने इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी आरिज खान को मौत की सजा सुनाकर बटला हाउस एनकाउंटर पर मुहर लगा दी है। कोर्ट ने इस मामले को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर माना है। एनकाउंटर के दौरान आरिज भाग निकला था। उसे 2018 में नेपाल से गिरफ्तार किया गया था। 2008 में बटला हाउस एनकाउंटर को लेकर देशभर में हंगामा खड़ा हो गया था। दिल्ली के बटला हाउस में 19 सितंबर 2008 की सुबह एनकाउंटर हुआ था। उससे ठीक एक हफ्ता पहले 13 सितंबर 2008 को दिल्ली में पांच जगहों पर ब्लास्ट हुए थे। तीन जिंदा बम भी मिले थे। 50 मिनट में हुए इन पांच धमाकों में करीब 39 लोग मारे गए थे। इस मामले की जांच कर रही दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल जांच के दौरान बटला हाउस में एल-18 नंबर की इमारत की तीसरी मंजिल पर पहुंच गई। वहां इंडियन मुजाहिद्दीन के संदिग्ध आतंकियों से मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ में दो संदिग्ध मारे गए थे, दो गिरफ्तार हुए थे। एक फरार हो गया था। इस एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा शहीद हो गए थे। इस दौरान अनेक मानवाधिकार संगठनों और राजनीतिक दलों ने बटला हाउस एनकाउंटर को फेक बताया था। हालांकि हाईकोर्ट द्वारा करवाई गई जांच के बाद दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दे दी गई थी। इसके बावजूद यदाकदा बटला हाउस को लेकर सियासी दांव पेंच खेल जाते रहे। इसी मामले को लेकर समाजवादी नेता अमर सिंह और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने जामियानगर में मंच साझा किया था और बटला हाउस एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए न्यायिक जांच की मांग थी। उनका कहना था कि और कहा था कि अगर वे झूठी साबित हुईं तो वो राजनीति करना छोड़ देंगी। यहां तक कि उसे समय सत्ता पक्ष कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और सलमान खुर्शीद ने भी इस एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए दिल्ली पुलिस को कठघरे में खड़ा किया था। ये सब नेता केवल यहीं तक ही नहीं ठहरे, इनका कहना था कि पुलिस ने एक साजिश के तहत एक विशेष समुदाय के युवाओं को निशाना बनाकर एनकाउंटर कर दिया। जबकि इस एनकाउंटर में पुलिस के एक जाबांज इंस्पेक्टर भी शहीद हो गए थे। केवल वोट बैंक के लिए ये लोग सियासी रोटियां सेकते रहे। जब बीते दिनों अदालत ने आरिज खान को दोषी ठहराया था, तो केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एनकाउंटर को फर्जी बताने वाले नेताओं को जमकर आड़े हाथों लिया। यह सही भी है। दिल्ली देश की राजधानी है, यहां की पुलिस देश के सभी राज्यों से आधुनिक और सशक्त मानी जाती है। यह दिल्ली पुलिस की मुस्तैदी का ही परिणाम है कि सैकड़ों प्रयासों के बाद भी देश के दुश्मन दिल्ली का बाल भी बांका नहीं कर पाए। पुलिस ने ऐसे अनेक दहशतगर्दों को गिरफ्तार किया है, जो दिल्ली को दहलाने के इरादे ये यहां आते हैं। यहां तक कि देश के दूसरे हिस्सों पर हमला करने वालों को भी यहां कि पुलिस ने समय-समय पर बेनकाब किया है। ऐसे में पुलिस पर ही सवाल उठाना कहां तक वाजिब है। वो भी तब जब हाईकोर्ट के निर्देश पर हुई जांच में उसे क्लीन चिट दे दी गई हो, लेकिन हमारे राजनीति दल इन तथ्यों की कहां चिंता करते हैं, उन्हें तो केवल और केवल अपना वोट बैंक नजर आता है। इसके लिए वे सुरक्षा बलों पर भी लांछने लगाने से बाज नहीं आते। अब जबकि साफ हो गया है कि दिल्ली पुलिस द्वारा किया गया एनकाउंटर सही था और जो मारे गए और भाग गया आरिज खान आतंकी ही था तो क्या वो सब लोग जिन्होंने पुलिस पर लांछन लगाए थे, माफी मांगेंगे। बेशक कोई भी माफी नहीं मांगेगा। सभी की बोलती बंद है। आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मामलों पर राजनीतिक रोटी सेंकने में माहिर नेताओं की मंडली पूरी तरह चुप है। भाजपा नेता उन्हें उनके बयान याद दिला रहे हैं। लेकिन सभी को सांप सूंघ गया है।
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