पटना
बेनीपट्टी की इस घटना को आज जातीय संघर्ष बनाने की कोशिश जरूर हो रही है। मृतक के परिवार राजपूत जाति से हैं, जबकि मुख्य आरोपी ब्राह्णण है। पूरी घटना को जातीय रंग देने की कोशिश भले की जा रही हो पर आरोपियों की पूरी फेहरिस्त पर नजर डालें तो कहानी साफ हो जाती है कि इस घटना के पीछे जातीय संघर्ष कहीं से नहीं था। आरोपियों में 18 ब्राह्मण हैं, जबकि 13 राजपूत भी शामिल हैं। एक ईबीसी और 2 एससी वर्ग से आते हैं। कुल नामजद आरोपियों की संख्या 34 है।
29 मार्च को होली के दिन हुए इस खूनी संघर्ष के बाद हर राजनीतिक दलों के खास जातियों के नेताओं के पहुंचने और बयानबाजियों ने इसे जातीय रंग देना शुरू कर दिया है। खास बात यह है कि सभी दलों के राजपूत नेता ही महमदपुर पहुंचे हैं। घटना के बाद आरजेडी ने अपना 7 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल महमदपुर गांव भेजा।
इस जांच समिति का संयोजक पूर्व सांसद रामा सिंह को बनाया गया। समिति में चेतन आंनद, सुधाकर सिंह, शशि भूषण सिंह, रणधीर सिंह के साथ 6 सदस्य शामिल थे। जेडीयू ने भी मामले को देखते हुए बिना देर किये अपनी टीम भेजी। जेडीयू की तरफ से पूर्व मंत्री जय कुमार सिंह, पूर्व विधायक मंजीत सिंह, सुनील कुमार सिंह और शैलेन्द्र सिंह शामिल थे। बीजेपी के ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू ने भी इस हत्याकांड मामले में पुलिस पर बड़े सवाल खड़े किए। सभी राजनीतिक दलों द्वारा जातीय लोगों के शामिल होने के बाद मामले को जातीय संघर्ष में बदलने की कोशिश होती रही।
बेनीपट्टी के महमदपुर में घटी खूनी संघर्ष के पीछे मछली का व्यापार सबसे बड़ी वजह के रूप में सामने आया है। लगभग 5 महीना पहले नवंबर में पीड़ित परिवार के बड़े लड़के संजय सिंह और गैबीपुर के मुकेश साफी के बीच तालाब से मछली मारने को लेकर संघर्ष शुरू हुआ। बाद में संजय सिंह पर एससी-एसटी एक्ट लगा दिया गया, जिसके बाद आज तक वह जेल में हैं। गैबीपुर के ही प्रवीण झा और अन्य पर संजय सिंह ने FIR कराया पर गिरफ्तारी नहीं हुई। होली के दिन पुरानी अदावत फिर सामने आई और झगड़े से शुरू हुआ मामला खूनी संघर्ष में बदल गया। एक के बाद एक कर के एक ही परिवार के पांच लोगों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई
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