90 फीसदी पहुंचा डेट-जीडीपी रेश्यो
नई दिल्ली
देश में फैली कोरोना महामारी के चलते देश का कर्ज-जीडीपी का अनुपात ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में देश का कर्ज 74 फीसदी था जो कि कोरोना संकट में बढ़कर 90 फीसदी पर पहुंच गया है। साल 2020 में देश का कुल GDP 189 लाख करोड़ रुपये रहा था। वहीं, कर्ज करीब 170 लाख करोड़ रुपये था। IMF की ओर से जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक, देश का कर्ज तो बढ़ा है लेकिन इस समय पर इकोनॉमी में जो सुधार और रिकवरी देखने को मिल रही है उसकी वजह से यह अनुपात करीब 10 फीसदी तक घट सकता है। यानी जल्द ही यह अनुपात 80 फीसदी हो जाएगा। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, IMF के वित्तीय मामले विभाग के डिप्टी डायरेक्टर पाओलो मॉरो ने कहा, 'कोरोना महामारी से पहले साल 2019 में भारत का कर्ज अनुपात GDP का 74 फीसदी था, लेकिन साल 2020 में यह जीडीपी के करीब 90 फीसदी तक आ गया है। लेकिन दूसरे उभरते बाजारों या उन्नत अर्थव्यवस्थाओं का भी यही हाल है।'
इसके आगे उन्होंने कहा कि हमारा अनुमान है जिस तरह से देश की इकोनॉमी में सुधार होगा। देश का कर्ज भी कम होगा। इसके साथ ही जल्द ही यह कर्ज 80 फीसदी पर पहुंच जाएगा।पाओलो मॉरो ने कहा कि इस संकट में हमें देश की कंपनियों और लोगों की मदद करनी चाहिए, जिससे वह अपने कामकाज को आगे बढ़ा सकें। इससे देश की इकोनॉमी को भी रफ्तार मिलेगी। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि आम जनता और निवेशकों को यह फिर से भरोसा दिया जाए कि लोक वित्त नियंत्रण में रहेगा और एक विश्वसनीय मध्यम अवधि के राजकोषीय ढांचे द्वारा इसे किया जाएगा। आपको बता दें देश का जो भी कुल कर्ज होता है उसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के कर्ज का ही योग होता है।
बता दें कि पॉलिसी मीट में भी आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022 के लिए जीडीपी ग्रोथ अनुमान 10।5 फीसदी ही दिया था। देश में ग्रोथ को कोविड की वजह से भारी मार पड़ी है। सप्लाई चेन बुरी तरह से प्रभावित हुई है और छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई है। इसके अलावा आरबीआई ने वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी में 7।5-8 फीसदी के संकुचन का अनुमान किया है।
डेट-GDP अनुपात या सरकारी कर्ज अनुपात के जरिए किसी भी देश के कर्ज चुकाने की क्षमता को दिखाता है, जिस देश का डेट-GDP रेश्यो जितना ज्यादा होता है उस देश को कर्ज चुकाने के लिए उतनी ही ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अगर किसी देश का डेट-GDP अनुपात जितना अधिक बढ़ता है, उसके डिफाॅल्ट होने की आशंका उतनी अधिक हो जाती है।
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